Self Respect Shayari |खुद्दारी शायरी | आत्मसम्मान शायरी | खुद्दार शायरी | स्वाभिमान वाली शायरी
मेरी खुद्दारी इजाजत नहीं देती,
कैसे कहूँ कि मुझे तेरी जरूरत है.
खुद्दारी में हमने तो खुदा को भुला दिया,
फिर तुम्हारी क्या औकात है…
खुद्दारी सहेज कर रखना,
दौलत तो आती जाती रहेगी.
किसी की खुद्दारी तो किसी का ईमान छीन लेता है,
पैसा ऐसा चीज है साहब चेहरे से मुस्कान छीन लेता है.
आज जी भर के आईना देख लेने दे ऐ दोस्त,
मुद्दतों बाद किसी की आँखों में खुद्दारी देखी है.
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माना कि आज मेरे हालात कुछ खराब है,
मगर खुद्दारी मुझमें अभी भी बरकरार है.
कुछ रातें ऐसी थी जो ख्वाहिशों पे भारी थी,
उन्हें अपनी अदा पर नाज था हमें खुद्दारी प्यारी थी.
अपनी ख़ुद्दारी सलामत दिल का आलम कुछ सही
जिस जगह से उठ चुके हैं उस जगह फिर जाएँ क्या
आ कही मिलती हैं हम ताकि बहारे आ जाएँ,
इस से पहले कि तअल्लुक में दरारें आ जाएँ,
ये जो खुद्दारी का मैला सा अंगोछा है मेरा
मैं अगर बेच दूँ इसको तो कई कारें आ जाएँ.
इस खुद्दारी भरी दुनिया में मुस्कान ही तो है,
जो हैसियत देख कर नहीं मिलती.
इतनी तो खुद्दारी लाजमी थी,
उसने हाथ छुड़ाया और मैंने छोड़ दिया.
रूठा हुआ है मुझ से इस बात पर जमाना,
शामिल नहीं है मेरी फितरत में सिर झुकाना.
मुझे पता है मेरी खुद्दारी तुम्हें खो देगी,
मैं भी क्या करूँ मुझे माँगने की आदत नहीं.
जो हकीकत की नजरों में खुद्दार होता है,
वही दुनिया की नजरों में गद्दार होता है.
हाँ, किरदार में मेरे अदाकारियाँ नहीं है,
खुद्दारी है, गुरूर है पर मक्कारियाँ नहीं है.
मुझे तो सच्चाई की फनकारी ले डूबी,
बड़ा खुद्दार था, मुझे खुद्दारी ले डूबी,
दवा तो वो थी कि तुझसे दूर ही रहता
मुझे तेरे इश्क की बीमारी ले डूबी.
हाथ खाली है तेरे शहर से जाते-जाते,
जान होती तो मेरी जान लुटाते जाते.
अपनी खुद्दारी को निलाम नहीं कर सकते है,
उसका नंबर तो है पर बात नहीं कर सकते है.
ख़ुद्दारी-ए-इश्क़ ने सिखाया मुझ को
दिल दे के किसी को बे-ज़बाँ हो जाना
अना ख़ूद्दार की रखती है उस का सर बुलंदी पर
किसी पोरस के आगे हर सिकंदर टूट जाता है
मैं तिरे दर का भिकारी तू मिरे दर का फ़क़ीर
आदमी इस दौर में ख़ुद्दार हो सकता नहीं
एक चिराग अन्धकार पर भारी है,
जीवन में खुद्दारी का सफर जारी है.
मुफ़लिसी ने कर दिया है उस की ख़ुद्दारी का ख़ून
वो पहनता है किसी की मेहरबानी का लिबास
बादशाहों से भी फेंके हुए सिक्के न लिए
हम ने ख़ैरात भी माँगी है तो ख़ुद्दारी से
मेरी ख़ुद्दारी सदा करती है मेरी रहबरी
मैं कभी पत्थर से अपने सर को टकराता नहीं
पाँव कमर तक धँस जाते हैं धरती में
हाथ पसारे जब ख़ुद्दारी रहती है
जमाने को हमसे शिकायत बहुत है,
कि हमे जी हुजूरी आती नहीं है,
कोशिश बड़ी की झुकाने की सिर को,
पर करे क्या, ये खुद्दारी जाती नहीं है.
दुनिया मेरी बला जाने महँगी है या सस्ती है
मौत मिले तो मुफ़्त न लूँ हस्ती की क्या हस्ती है
खुद्दरियों में हद से गुजर जाना चाहिए,
इज्जत से न जी पाये तो मर जाना चाहिए.
किसी रईस की महफ़िल का ज़िक्र ही क्या है
ख़ुदा के घर भी न जाएँगे बिन बुलाए हुए
जब समझ में आ जाएँ अपनी की मक्कारी,
तो खुद के अंदर जिन्दा कर लेना खुद्दारी.
खुद्दारी गिरवी रखता हूँ,
जमीर दूसरों को थमा देता हूँ,
और ये दुनिया कहती है
मैं पैसा अच्छा कमा लेता हूँ.
मुझे दुश्मन से भी खुद्दारी की उम्मीद रहती है,
किसी का भी हो सर कदमों में सर अच्छा नहीं लगता.
Heart Touching Love Shayari in Hindi
किसी को कैसे बताएँ ज़रूरतें अपनी
मदद मिले न मिले आबरू तो जाती है
मेरी ख़ुद्दारी ने एहसान किया है मुझ पर
वर्ना जो जाते हैं दरबार में खो जाते हैं
जिस दिन मेरी जबीं किसी दहलीज़ पर झुके
उस दिन ख़ुदा शिगाफ़ मेरे सर में डाल दे
तबीअत इस तरफ़ ख़ुद्दार भी है
उधर नाज़ुक मिज़ाज-ए-यार भी है
ख़ैरात की जन्नत ठुकरा दे है शान यही ख़ुद्दारी की
जन्नत से निकाला था जिस को तू उस आदम का पोता है
दुनिया की इस भीड़ में
खुद को नही खोना है
अपनी खुदी को बेखुदी
नहीं होने देना है
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