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Mirza Galib Shayari in Hindi

Mirza Galib Shayari in Hindi

 



Mirza Galib Shayari in Hindi


इश्क़ ने ग़ालिब निकम्मा कर दिया।
वर्ना हम भी आदमी थे काम के।।

 

Mirza Galib Shayari in Hindi

इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ ख़ुदा
लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं

 

ishq ne gaalib nikamma kar diya.
varna ham bhee aadamee the kaam ke..

Mirza Galib Shayari in Hindi

 

आज फिर पहली मुलाक़ात से आग़ाज़ करूँ,
आज फिर दूर से ही देख के आऊँ उस को !!

Mirza Galib Shayari in Hindi

   

दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है
आख़िर इस दर्द की दवा क्या है
Mirza Galib Shayari in Hindi


नसीहत के कुतुब-ख़ाने* यूँ तो दुनिया में भरे हैं,
ठोकरें खा के ही अक्सर बंदे को अक़्ल आई है !!


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रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ाइल,
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है !!

  

हर रंज में ख़ुशी की थी उम्मीद बरक़रार,
तुम मुस्कुरा दिए मेरे ज़माने बन गये !!

 

फ़िक्र-ए-दुनिया में सर खपाता हूँ
मैं कहाँ और ये वबाल कहाँ !!



कोई मेरे दिल से पूछे तिरे तीर-ए-नीम-कश को
ये ख़लिश कहाँ से होती जो जिगर के पार होता

 

न सुनो गर बुरा कहे कोई,
न कहो गर बुरा करे कोई !!
रोक लो गर ग़लत चले कोई,
बख़्श दो गर ख़ता करे कोई !!

 

वो रास्ते जिन पे कोई सिलवट ना पड़ सकी,
उन रास्तों को मोड़ के सिरहाने रख लिया !!

 

कुछ लम्हे हमने ख़र्च किए थे मिले नही,
सारा हिसाब जोड़ के सिरहाने रख लिया !!

 

आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक
कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक

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ग़ालिब’ बुरा न मान जो वाइ’ज़ बुरा कहे
ऐसा भी कोई है कि सब अच्छा कहें जिसे …

  

जो कुछ है महव-ए-शोख़ी-ए-अबरू-ए-यार है,
आँखों को रख के ताक़ पे देखा करे कोई !!

 

इन आबलों से पाँव के घबरा गया था मैं,
जी ख़ुश हुआ है राह को पुर-ख़ार देख कर !!

 



‏मुहब्बत में उनकी अना का पास रखते हैं,
हम जानकर अक्सर उन्हें नाराज़ रखते हैं !!

 

चाहें ख़ाक में मिला भी दे किसी याद सा भुला भी दे,
महकेंगे हसरतों के नक़्श* हो हो कर पाएमाल^ भी !!


है एक तीर जिस में दोनों छिदे पड़े हैं
वो दिन गए कि अपना दिल से जिगर जुदा था

 

क़ासिद के आते आते ख़त इक और लिख रखूँ,
मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में !!

 

फिर देखिए अंदाज़-ए-गुल-अफ़्शानी-ए-गुफ़्तार,
रख दे कोई पैमाना-ए-सहबा मिरे आगे !!

 

जी ढूँडता है फिर वही फ़ुर्सत कि रात दिन,
बैठे रहें तसव्वुर-ए-जानाँ किए हुए !!

 

अर्ज़-ए-नियाज़-ए-इश्क़ के क़ाबिल नहीं रहा
जिस दिल पे नाज़ था मुझे वो दिल नहीं रहा



ये फ़ित्ना आदमी की ख़ाना-वीरानी को क्या कम है
हुए तुम दोस्त जिस के दुश्मन उस का आसमाँ क्यूँ हो

 

ता फिर न इंतिज़ार में नींद आए उम्र भर,
आने का अहद कर गए आए जो ख़्वाब में !! –

 



क़ैद-ए-हयात ओ बंद-ए-ग़म अस्ल में दोनों एक हैं
मौत से पहले आदमी ग़म से नजात पाए क्यूँ

 

हम महव-ए-चश्म-ए-रंगीं-ए-जवाब* हुए हैं जबसे,
शौक़-ए-दीदार हुआ जाता है हर सवाल का रंग !!


जिस ज़ख़्म की हो सकती हो तदबीर रफ़ू की,
लिख दीजियो या रब उसे क़िस्मत में अदू की !!


तेरे वादे पर जिये हम
तो यह जान,झूठ जाना
कि ख़ुशी से मर न जाते
अगर एतबार होता ..

 

तुम अपने शिकवे की बातें
न खोद खोद के पूछो
हज़र करो मिरे दिल से
कि उस में आग दबी है..

 

इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ ख़ुदा
लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं

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अपनी गली में मुझ को
न कर दफ़्न बाद-ए-क़त्ल
मेरे पते से ख़ल्क़ को
क्यूँ तेरा घर मिले

  

भीगी हुई सी रात में जब याद जल उठी,
बादल सा इक निचोड़ के सिरहाने रख लिया !!

 

अब अगले मौसमों में यही काम आएगा,
कुछ रोज़ दर्द ओढ़ के सिरहाने रख लिया !!

 



अफ़साना आधा छोड़ के सिरहाने रख लिया,
ख़्वाहिश का वर्क़ मोड़ के सिरहाने रख लिया !!

 

तमीज़-ए-ज़िश्ती-ओ-नेकी में लाख बातें हैं,
ब-अक्स-ए-आइना यक-फ़र्द-ए-सादा रखते हैं !!


ज़रा कर ज़ोर सीने में कि तीरे-पुर-सितम निकले,
जो वो निकले तो दिल निकले, जो दिल निकले तो दम निकले !!

 

रंज से ख़ूगर हुआ इंसाँ तो मिट जाता है रंज,
मुश्किलें मुझ पर पड़ीं इतनी कि आसाँ हो गईं !!

 

हम हैं मुश्ताक़ और वो बे-ज़ार
या इलाही ये माजरा क्या है !!
जान तुम पर निसार करता हूँ,
मैं नहीं जानता दुआ क्या है !!

 

पड़िए गर बीमार तो कोई न हो तीमारदार
और अगर मर जाइए तो नौहा-ख़्वाँ कोई न हो

 

हसद से दिल अगर अफ़्सुर्दा है गर्म-ए-तमाशा हो
कि चश्म-ए-तंग शायद कसरत-ए-नज़्ज़ारा से वा हो

 

हम तो जाने कब से हैं आवारा-ए-ज़ुल्मत मगर,
तुम ठहर जाओ तो पल भर में गुज़र जाएगी रात !!

  

है उफ़ुक़ से एक संग-ए-आफ़्ताब आने की देर,
टूट कर मानिंद-ए-आईना बिखर जाएगी रात !!/

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दैर नहीं हरम नहीं दर नहीं आस्ताँ नहीं
बैठे हैं रहगुज़र पे हम ग़ैर हमें उठाए क्यूँ

 




हम हैं मुश्ताक़ और वो बे-ज़ार
या इलाही ये माजरा क्या है



हो उसका ज़िक्र तो बारिश सी दिल में होती है
वो याद आये तो आती है दफ’तन ख़ुशबू

 

इक शौक़ बड़ाई का अगर हद से गुज़र जाए
फिर ‘मैं’ के सिवा कुछ भी दिखाई नहीं देता

 

इक क़ैद है आज़ादी-ए-अफ़्कार भी गोया,
इक दाम जो उड़ने से रिहाई नहीं देता

 

इक आह-ए-ख़ता गिर्या-ब-लब सुब्ह-ए-अज़ल से,
इक दर है जो तौबा को रसाई नहीं देता

 

इक क़ुर्ब जो क़ुर्बत को रसाई नहीं देता,
इक फ़ासला अहसास-ए-जुदाई नहीं देता

  

ज़िन्दग़ी में तो सभी प्यार किया करते हैं,
मैं तो मर कर भी मेरी जान तुझे चाहूँगा !!

 




तू मिला है तो ये अहसास हुआ है मुझको,
ये मेरी उम्र मोहब्बत के लिए थोड़ी है ….

 

खार भी ज़ीस्त-ए-गुलिस्ताँ हैं,
फूल ही हाँसिल-ए-बहार नहीं !!


वो जो काँटों का राज़दार नहीं,
फ़स्ल-ए-गुल का भी पास-दार नहीं !!

 

मैं चमन में क्या गया गोया दबिस्ताँ खुल गया,
बुलबुलें सुन कर मिरे नाले ग़ज़ल-ख़्वाँ हो गईं !!

 

हम जो सबका दिल रखते हैं
सुनो, हम भी एक दिल रखते हैं

 

शहरे वफा में धूप का साथी नहीं कोई
सूरज सरों पर आया तो साये भी घट गए

 

खुद को मनवाने का मुझको भी हुनर आता है
मैं वह कतरा हूं समंदर मेरे घर आता है

 

फिर आबलों के ज़ख़्म चलो ताज़ा ही कर लें,
कोई रहने ना पाए बाब जुदा रूदाद-ए-सफ़र से !!

Shayari On Life

Zindagi Shayari Hindi

Life Quotes in Hindi  

एजाज़ तेरे इश्क़ का ये नही तो और क्या है,
उड़ने का ख़्वाब देख लिया इक टूटे हुए पर से !!

 

साज़-ए-दिल को गुदगुदाया इश्क़ ने
मौत को ले कर जवानी आ गई

 




मैं तो इस सादगी-ए-हुस्न पे सदक़े,
न जफ़ा आती है जिसको न वफ़ा आती है !!

 

यादे-जानाँ भी अजब रूह-फ़ज़ा आती है,
साँस लेता हूँ तो जन्नत की हवा आती है !!
है और तो कोई सबब उसकी मुहब्बत का नहीं,
बात इतनी है के वो मुझसे जफ़ा करता है !!


हम भी दुश्मन तो नहीं हैं अपने
ग़ैर को तुझ से मोहब्बत ही सही

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Love Shayari | लव शायरी

Heart Touching Love Shayari in Hindi

कुछ तो तन्हाई की रातों में सहारा होता,
तुम न होते न सही ज़िक्र तुम्हारा होता !!

 

गुज़र रहा हूँ यहाँ से भी गुज़र जाउँगा,
मैं वक़्त हूँ कहीं ठहरा तो मर जाउँगा !! –

 

गुज़रे हुए लम्हों को मैं इक बार तो जी लूँ,
कुछ ख्वाब तेरी याद दिलाने के लिए हैं !!

 

क़र्ज़ की पीते थे मय लेकिन समझते थे कि हाँ
रंग लावेगी हमारी फ़ाक़ा-मस्ती एक दिन

 

ईमाँ मुझे रोके है जो खींचे है मुझे कुफ़्र
काबा मिरे पीछे है कलीसा मिरे आगे

  

है आदमी बजा-ए-ख़ुद इक महशर-ए-ख़याल,
हम अंजुमन समझते हैं ख़ल्वत ही क्यूँ न हो

 

तिरे वादे पर जिए हम तो ये जान झूट जाना,
कि ख़ुशी से मर न जाते अगर ए’तिबार होता !!

 





बे-नियाज़ी हद से गुज़री बंदा-परवर कब तलक
हम कहेंगे हाल-ए-दिल और आप फ़रमावेंगे क्या

 

तुम सलामत रहो हज़ार बरस,
हर बरस के हों दिन पचास हज़ार !!


मौत फिर जीस्त न बन जाये यह डर है’गालिब’,
वह मेरी कब्र पर अंगुश्त-बदंदाँ होंगे !!

 Happy Birthday Shayari



मत पूछ कि क्या हाल है मेरा तिरे पीछे,
तू देख कि क्या रंग है तेरा मिरे आगे !!

 

तुम न आओगे तो मरने की हैं सौ तदबीरें,
मौत कुछ तुम तो नहीं हो कि बुला भी न सकूँ !!

 

कुछ खटकता था मिरे सीने में लेकिन आख़िर,
जिस को दिल कहते थे सो तीर का पैकाँ निकला !!-

 

अच्छा है सर-अंगुश्त-ए-हिनाई का तसव्वुर,
दिल में नज़र आती तो है इक बूँद लहू की !!

 

की मेरे क़त्ल के बाद उस ने जफ़ा से तौबा,
हाए उस ज़ूद-पशीमाँ का पशीमाँ होना !! –

  

आता है मेरे क़त्ल को पर जोश-ए-रश्क से
मरता हूँ उस के हाथ में तलवार देख कर

 

करने गये थे उनसे तगाफुल का हम गिला,
की एक ही निगाह कि हम खाक हो गये !! –

 




यादव शायरी 


ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता,
अगर और जीते रहते यही इंतिज़ार होता !! –

 

ता करे न ग़म्माज़ी कर लिया है दुश्मन को
दोस्त की शिकायत में हम ने हम-ज़बाँ अपना


बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मिरे आगे
होता है तमाशा शब् ओ रोज़ मेरे आगे

 

हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले
आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक

 

हैं और भी दुनिया में सुख़न-वर बहुत अच्छे
कहते हैं कि ‘ग़ालिब’ का है अंदाज़-ए-बयाँ और

 

दर्द मिन्नत-कश-ए-दवा न हुआ
मैं न अच्छा हुआ बुरा न हुआ

 

फिर मुझे दीदा-ए-तर याद आया
दिल जिगर तश्ना ए फरियाद आया
दम लिया था ना कयामत ने हनोज़
फिर तेरा वक्ते सफ़र याद आया

 

जान दी दी हुई उसी की थी
हक़ तो ये है कि हक़ अदा न हुआ

  

छोड़ूँगा मैं न उस बुत-ए-काफ़िर का पूजना
छोड़े न ख़ल्क़ गो मुझे काफ़र कहे बग़ैर

 

क्या वो नमरूद की ख़ुदाई थी
जो बंदगी में मिरा भला न हुआ

 




गुड नाईट शायरी फोटो 


मुज़्दा ऐ ज़ौक़-ए-असीरी कि नज़र आता है
दाम-ए-ख़ाली क़फ़स-ए-मुर्ग़-ए-गिरफ़्तार के पास

 

इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना
दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना


‘ग़ालिब’ वज़ीफ़ा-ख़्वार हो दो शाह को दुआ
वो दिन गए कि कहते थे नौकर नहीं हूँ मैं

 

ग़म-ए-हस्ती का ‘असद’ किस से हो जुज़ मर्ग इलाज
शम्अ हर रंग में जलती है सहर होते तक

 

जाँ दर-हवा-ए-यक-निगाह-ए-गर्म है ‘असद’
परवाना है वकील तिरे दाद-ख़्वाह का

 

मैं बुलाता तो हूँ उस को मगर ऐ जज़्बा-ए-दिल
उस पे बन जाए कुछ ऐसी कि बिन आए न बने

 

ख़ार ख़ार-ए-अलम-ए-हसरत-ए-दीदार तो है
शौक़ गुल-चीन-ए-गुलिस्तान-ए-तसल्ली न सही

 

न हुई गर मिरे मरने से तसल्ली न सही
इम्तिहाँ और भी बाक़ी हो तो ये भी न सही

  

इब्न-ए-मरयम हुआ करे कोई
मेरे दुख की दवा करे कोई

 

ओहदे से मद्ह-ए-नाज़ के बाहर न आ सका
गर इक अदा हो तो उसे अपनी क़ज़ा कहूँ

 




जीजा साली शायरी 


इश्क़ मुझ को नहीं वहशत ही सही
मेरी वहशत तिरी शोहरत ही सही

 

दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है
आख़िर इस दर्द की दवा क्या है


न था कुछ तो ख़ुदा था कुछ न होता तो ख़ुदा होता
डुबोया मुझ को होने ने न होता मैं तो क्या होता

 

नुक्ता-चीं है ग़म-ए-दिल उस को सुनाए न बने
क्या बने बात जहाँ बात बताए न बने

 

आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक
कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक

 

आशिक़ी सब्र तलब और तमन्ना बेताब
दिल का क्या रँग करूँ खून-ए-जिगर होने तक

 

हो चुकीं ‘ग़ालिब’ बलाएँ सब तमाम
एक मर्ग-ए-ना-गहानी और है

 

इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश ‘ग़ालिब’
कि लगाए न लगे और बुझाए न बने

  

इनकार की सी लज़्ज़त इक़रार में कहाँ,
होता है इश्क़ ग़ालिब उनकी नहीं नहीं से !!

 

कहूँ किस से मैं कि क्या है शब-ए-ग़म बुरी बला है
मुझे क्या बुरा था मरना अगर एक बार होता

 


Love Shayari Image Download


देखो तो दिल फ़रेबि-ए-अंदाज़-ए-नक़्श-ए-पा,
मौज-ए-ख़िराम-ए-यार भी क्या गुल कतर गई !! –

 

देखिए लाती है उस शोख़ की नख़वत क्या रंग
उस की हर बात पे हम नाम-ए-ख़ुदा कहते हैं


तू ने कसम मय-कशी की खाई है ‘ग़ालिब’
तेरी कसम का कुछ एतिबार नही है..!

 

मोहब्बत में नही फर्क जीने और मरने का
उसी को देखकर जीते है जिस ‘काफ़िर’ पे दम निकले..!

 

मगर लिखवाए कोई उस को खत
तो हम से लिखवाए
हुई सुब्ह और
घरसे कान पर रख कर कलम निकले..

 

मरते है आरज़ू में मरने की
मौत आती है पर नही आती,
काबा किस मुँह से जाओगे ‘ग़ालिब’
शर्म तुमको मगर नही आती ।

 

कहाँ मयखाने का दरवाज़ा ‘ग़ालिब’ और कहाँ वाइज
पर इतना जानते है कल वो जाता था के हम निकले..

 

बना कर फकीरों का हम भेस ग़ालिब
तमाशा-ए-अहल-ए-करम देखते है..

  

तेरे वादे पर जिये हम, तो यह जान झूठ जाना,
कि ख़ुशी से मर न जाते, अगर एतबार होता ।

 

ग़ालिब ने यह कह कर तोड़ दी तस्बीह.
गिनकर क्यों नाम लू उसका जो बेहिसाब देता है।

 



फनी शायरी 


हुई मुद्दत कि ‘ग़ालिब’मर गया पर याद आता है,
वो हर इक बात पर कहना कि यूँ होता तो क्या होता !


तेरे वादे पर जिये हम
तो यह जान,झूठ जाना
कि ख़ुशी से मर न जाते
अगर एतबार होता ..

 

Tere vaade par jiye ham
to yah jaan,jhooth jaana
ki khushee se mar na jaate
agar etabaar hota ..

 

तुम अपने शिकवे की बातें
न खोद खोद के पूछो
हज़र करो मिरे दिल से
कि उस में आग दबी है..

 

Tum apane shikave kee baaten
na khod khod ke poochho
hazar karo mire dil se
ki us mein aag dabee hai..

 

तू ने कसम मय-कशी की खाई है ‘ग़ालिब’
तेरी कसम का कुछ एतिबार नही है..!

  

Tune kasam may-kashee kee khaee hai ‘gaalib’
teree kasam ka kuchh etibaar nahee hai..!

 

मोहब्बत में नही फर्क जीने और मरने का
उसी को देखकर जीते है जिस ‘काफ़िर’ पे दम निकले..!

 




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Mohabbat mein nahee phark jeene aur marane ka
Usee ko dekhakar jeete hai jis ‘kaafir’ pe dam nikale..!

 

मगर लिखवाए कोई उस को खत
तो हम से लिखवाए
हुई सुब्ह और
घरसे कान पर रख कर कलम निकले..


Magar likhavae koee us ko khat
To haum se likhavae
Huee subh aur
Gharase kaan par rakh kar kalam nikale..

 

मरते है आरज़ू में मरने की
मौत आती है पर नही आती,
काबा किस मुँह से जाओगे ‘ग़ालिब’
शर्म तुमको मगर नही आती ।

 

Marate hai aarazoo mein marane kee
Maut aatee hai par nahee aatee,
Kaaba kis munh se jaoge ‘gaalib’
Sharm tumako magar nahee aatee .

 

कहाँ मयखाने का दरवाज़ा ‘ग़ालिब’ और कहाँ वाइज
पर इतना जानते है कल वो जाता था के हम निकले..

 

Khaan mayakhaane ka daravaaza ‘gaalib’ aur kahaan vaij
par itana jaanate hai kal vo jaata tha ke ham nikale..

 

बना कर फकीरों का हम भेस ग़ालिब
तमाशा-ए-अहल-ए-करम देखते है..

  

Bana kar phakeeron ka ham bhes gaalib
Tamaasha-e-ahal-e-karam dekhate hai..

 

तेरे वादे पर जिये हम, तो यह जान झूठ जाना,
कि ख़ुशी से मर न जाते, अगर एतबार होता ।

 


Tere vaade par jiye ham, to yah jaan jhooth jaana,
Ki khushee se mar na jaate, agar etabaar hota .

 

काबा किस मुँह से जाओगे 'ग़ालिब'।
शर्म तुम को मगर नहीं आती।।


kaaba kis munh se jaoge Gaalib.
sharm tum ko magar nahin aatee..

 

दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है।
आख़िर इस दर्द की दवा क्या है।।

 

dil-e-naadaan tujhe hua kya hai.
aakhir is dard kee dava kya hai..

 

हैं और भी दुनिया में सुखनवर बहुत अच्छे,
कहते हैं कि ग़ालिब का है अंदाज़-ए-बयाँ और।

 

Hain Aur Bhi Duniya Mein SukhanWar Bahut Achchhe,
Kehte Hain Ki Ghalib Ka Hai Andaaz-e-Bayaan Aur.

 

इश्क़ पर जोर नहीं है ये वो आतिश ग़ालिब,
कि लगाए न लगे और बुझाए न बने।

  

Ishq Par Jor Nahi Hai Ye Wo Aatish Galib,
Ki Lagaye Na Lage Aur Bujhaye Na Bujhe.

 

चाँदनी रात के खामोश सितारों की कसम,
दिल में अब तेरे सिवा कोई भी आबाद नहीं।

 





Chaandni Raat Ke Khamosh Sitaron Ki Kasam,
Dil Mein Ab Tere Siwa Koyi Bhi Aabaad Nahi.

 

आता है दाग-ए-हसरत-ए-दिल का शुमार याद,
मुझसे मेरे गुनाह का हिसाब ऐ खुदा न माँग।


Aata Hai Daag-e-Hasrat-e-Dil Ka Shumaar Yaad,
Mujhse Mere Gunaah Ka Hisaab Ai Khudaa Na Maang.

 

ता फिर न इंतज़ार में नींद आये उम्र भर,
आने का अहद कर गये आये जो ख्वाब में।

 

Ta Fir Na Intezaar Mein Neend Aaye Umr Bhar,
Aane Ka Ahed Kar Gaye Aaye Jo Khwaab Mein.

 

दिल गंवारा नहीं करता शिकस्ते-उम्मीद,
हर तगाफुल पे नवाजिश का गुमां होता है।

 

Dil Ganwara Nahi Karta Shikast-e-Ummeed,
Har Tagaful Pe Nawajish Ka Gumaan Hota Hai.

 

ग़ालिब बुरा न मान जो वाइज़ बुरा कहे,
ऐसा भी कोई है कि सब अच्छा कहें जिसे?

  

ज़िन्दगी अपनी जब इस शक्ल से गुज़री,
हम भी क्या याद करेंगे कि ख़ुदा रखते थे।

 

ज़िन्दगी अपनी जब इस शक्ल से गुज़री,
हम भी क्या याद करेंगे कि ख़ुदा रखते थे।

 





Zindagi Apni Jab Iss Shakl Se Gujri,
Hum Bhi Kya Yaad Karenge Ki Khuda Rakhte The.

 

आया है बेकसी-ए-इश्क पे रोना ग़ालिब,
किसके घर जायेगा सैलाब-ए-बला मेरे बाद।


Aaya Hai BeKasi-e-Ishq Pe Rona Ghalib,
Kiske Ghar Jayega Sailab-e-Bala Mere Baad.

 

इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना,
दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना।

 

Ishrat-e-Qatra Hai Dariya Mein Fanaa Ho Jana,
Dard Ka Hadd Se Gujarna Hai Dawa Ho Jana.

 

इश्क से तबियत ने जीस्त का मजा पाया,
दर्द की दवा पाई दर्द बे-दवा पाया।

 

Ishq Se Tabiyat Ne Zeest Ka Mazaa Paya,
Dard Ki Dawa Payi Dard Be Dawa Paya.

 

तुम न आओगे तो मरने की हैं सौ तदबीरें,
मौत कुछ तुम तो नहीं है कि बुला भी न सकूं।

  

Tum Na Aaoge To Marne Ki Hai Sau Tadbeerein,
Maut Kuchh Tum To Nahi Hai Ki Bula Bhi Na Saku.

 

आईना देख के अपना सा मुँह लेके रह गए,
साहब को दिल न देने पे कितना गुरूर था।

 


Aaina Dekh Apna Sa Moonh Le Ke Reh Gaye,
Sahab Ko Dil Na Dene Pe Kitna Guroor Tha.

 

उनके देखने से जो आ जाती है चेहरे पर रौनक,
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है।


Unke Dekhe Se Jo Aa Jaati Hai Chehre Par Raunaq,
Wo Samajhte Hain Ke Beemaar Ka Haal Achchha Hai.

 

ये न थी हमारी किस्मत कि विसाल-ए-यार होता,
अगर और जीते रहते यही इंतज़ार होता।

 

Ye Na Thi Humari Kismat Ki Visaal-e-Yaar Hota,
Agar Aur Jeete Rehte, Yehi Intezaar Hota.

 

आशिक़ी सब्र तलब और तमन्ना बेताब,
दिल का क्या रंग करूँ खून-ए-जिगर होने तक।

 

Aashiqi Sabr Talab Aur Tamanna Betab,
Dil Ka Kya Rang Karoon Khoon-e-Jigar Hone Tak.

 

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